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जब मैं तीन साल की थी तब मेरी ज़िंदगी उलट-पुलट हो गई थी। एक दिन मैं उससे मिली, और उसके बाद सब कुछ बदल गया!
तीन साल की उम्र में, मुझे तेज़ बुखार हुआ और उसके बाद अचानक दौरा पड़ा, जिसके बाद मेरे चेहरे पर पक्षाघात के लक्षण दिखने लगे। जब मैं पाँच साल की हुई, तब मेरा चेहरा दिखने में बिगड़ा हुआ लगा। ज़िंदगी सहज नहीं रही।
जैसे-जैसे मेरे माता-पिता नए-नए अस्पतालों में जाते रहे, मुझे जो दर्द और मानसिक क्षति हुई, उसे सहना बहुत मुश्किल हो गया—बार-बार पूछे जाने वाले सवाल, अजीबोगरीब नज़रें, हर बार नई दवाओं के प्रभाव और दवा खाने के बाद के बुरे असर…
मुझे अकेले रहना सहज था, क्योंकि विडंबना यह है कि, समूहों में मुझे अकेलापन महसूस होता था। मुझे इतना डर लगता था कि अगर मैं उन्हें देखकर मुस्कुराऊँ तो पड़ोस के बच्चे ज़ोर से रो पड़ेंगे। मुझे याद है कि मेरे पिताजी हर रात घर पर मिठाई लाते थे ताकि मुझे कड़वाहट से भरी अप्रिय दवा पीने में मदद मिल सके। फिजियोथेरेपी सत्रों के लिए अस्पताल के गलियारों में मेरी माँ के साथ साप्ताहिक सैर कभी भी सप्ताहांत की यात्रा नहीं थी – हर बार जब उत्तेजक पदार्थ से कंपन मेरे चेहरे पर पड़ती, तो आँसू बहने लगते।
कुछ खूबसूरत व्यक्तित्व थे जिन्होंने मेरे डर और दर्द को शांत किया, जैसे मेरे माता-पिता, जिन्होंने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। वे मुझे हर संभव अस्पताल ले गए, और हमने कई तरह के उपचार आजमाए। बाद में, जब न्यूरोसर्जरी का सुझाव दिया गया मैंने उन्हें तब भी आशंका से टूटते हुए देखा ।
जीवन में पहली बार मुझे लगा कि मैं कहीं और जी रही हूँ। मुझे कुछ करना था। इसलिए, कॉलेज के पहले सेमेस्टर में, इसे और सहन न कर पाने के कारण, मैंने दवाएँ बंद करने का फ़ैसला किया।
जब मैंने दवाएँ लेना बंद कर दिया, तो मुझे अपने दम पर मेरे जीवन का निर्माण करने की तीव्र इच्छा हुई। मैंने एक नए जीवन का स्वागत किया, लेकिन इसे कैसे जीना चाहिए, इस बारे में मुझे बिलकुल भी जानकारी नहीं थी। मैंने ज़्यादा लिखना, ज़्यादा सपने देखना, ज़्यादा पेंटिंग करना और जीवन के सभी कमज़ोर क्षेत्रों में रंगों की खोज करना शुरू कर दिया। वे दिन थे जब मैंने जीसस यूथ मूवमेंट (वैटिकन द्वारा स्वीकृत एक अंतर्राष्ट्रीय कैथलिक युवा आंदोलन) में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया; मैंने धीरे-धीरे सीखना शुरू किया कि कैसे खुद को ईश्वर के प्यार के लिए खोलना है और फिर से प्यार महसूस करना है…
कैथलिक जीवनशैली के महत्व के एहसास ने मुझे अपना उद्देश्य समझने में मदद की। मैंने फिर से यह मानना शुरू कर दिया कि मैं अपने साथ हुई हर चीज़ से कहीं बढ़कर हूँ। इन दिनों, जब मैं बंद दरवाज़ों से चिह्नित उन पलों को देखती हूँ, तो मैं स्पष्ट रूप से देख सकती हूँ कि प्रत्येक अस्वीकृति के भीतर, येशु की दयालु उपस्थिति हमेशा मेरे साथ थी, वे मुझे अपने असीम प्रेम और समझ से ढँक रहे थे। मैं कौन या क्या बन गयी हूँ और किन घावों से मेरी चंगाई हुई है, इसे मैं पहचानती हूँ।
हमारा प्रभु कहता है: “तुम मेरी दृष्टि में मूल्यवान हो और महत्त्व रखते हो। मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। इसलिए मैं तुम्हारे बदले मनुष्यों को देता हूँ, और तुम्हारे प्राणों के लिए राष्ट्रों को देता हूँ। नहीं डरो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।” (इसायाह 43:4-5)
अपनी असुरक्षाओं में उसे ढूँढ़ना कभी भी आसान काम नहीं था। आगे बढ़ने के लिए बहुत से कारण होने के बावजूद, टिके रहने का कोई कारण खोजने में मैं व्यस्त रही। और इस कारण मुझे अपनी कमज़ोरियों के बीच जीने की शक्ति और आत्मविश्वास प्राप्त हुआ। मसीह में अपना मूल्य, सम्मान और आनंद पाने की यात्रा बस अद्भुत थी। हम अक्सर संघर्षों से गुजरने के बाद भी अनुग्रह न मिलने की शिकायत करते हैं। मुझे लगता है कि यह सब संघर्षों को समझने के बारे में है। बिना किसी प्रकार के क्रोध के जीवन में थोड़े से भी समायोजन में ईमानदारी व्यक्त करना आपके जीवन में प्रकाश लाता है।
यह एक लंबी यात्रा थी। जबकि प्रभु अभी भी मेरी कहानी लिख रहा है, मैं हर दिन और अधिक को अपनाना, बिना किसी बाधा के आगे बढ़ना और जीवन में छोटी-छोटी खुशियों के लिए जगह बनाना सीख रही हूँ। मैं जिन ज़रूरतों की चाह रखती हूँ, अब मेरी प्रार्थनाओं में उन ज़रूरतों की निरंतर मांग नहीं करती हूँ। इसके बजाय, मैं उनसे कहती हूँ कि हे प्रभु मुझे इस तरह से होने वाले बदलावों के लिए ‘आमेन’ कहने के लिए मज़बूत करें।
मैं प्रार्थना करती हूँ कि वह मुझे मेरे भीतर और आस-पास के सभी नकारात्मक प्रभावों से ठीक करे और मुझे बदल दे।
मैं प्रभु से अपने उन खो गए हिस्सों को पुनर्जीवित करने के लिए कहती हूँ।
जिन मुसीबतों से मैं गुज़री हूँ, उन सभी बातों के लिए , दिन के हर मिनट में मुझे मिलने वाले सभी आशीर्वादों के लिए, और मैं जो व्यक्ति बन गयी हूँ उसके लिए भी प्रभु का शुक्रिया अदा करती हूँ।
और मैं अपने पूरे दिल और आत्मा से उससे प्यार करने की पूरी कोशिश कर रही हूँ।
एमिलिन मैथ्यू इंग्लैंड में एक सिविल सेवक हैं। वे सैंडरलैंड में रहती हैं और अपने विचारों को पढ़ना, पेंट करना और sanguinitydesign.wordpress.com पर लिखना पसंद करती हैं।
आप चाहे जिस भी परिस्थिति से गुज़र रहे हों, परमेश्वर वहाँ भी रास्ता बना देगा जहाँ कोई रास्ता नज़र नहीं आता… आज, मेरा बेटा आरिक अपनी श्रुतलेख की कॉपी (डिक्टेशन बुक) लेकर घर आया। उसे 'अच्छा' टिप्पणी के साथ लाल सितारा मिला। शायद यह किंडरगार्टन में पढनेवाले किसी बच्चे के लिए कोई बड़ी बात नहीं हो सकती है, लेकिन हमारे लिए, यह एक शानदार उपलब्धि है। स्कूल जैसे आरम्भ हुआ, पहले सप्ताह में ही, मुझे उसके क्लास टीचर का फोन आया। मेरे पति और मैं इस कॉल से घबरा गए। जब मैंने उसके शिक्षक को उसके संचार कौशल की कमी के बारे में समझाने की बहुत कोशिश की, तो मैंने कबूल किया था कि जब मैं विकलांगता के साथ जन्मी उसकी बड़ी बहन की विशेष ज़रूरतों की परवाह और देखभाल करती थी, तो मैं मुझसे बिन मांगे ही उसकी ज़रूरतों की पूर्ती केलिए काम करने की आदत में पड़ गई थी। चूँकि आरिक की दीदी एक भी शब्द नहीं बोल पाती थी, इसलिए मुझे उसकी ज़रूरतों का अंदाज़ा लगाना पड़ता था। आरिक के जीवन के शुरुआती दिनों में उसके लिए भी यही तरीका जारी था। इससे पहले कि वह पानी मांगे, मैं उसे पानी पिला देती। हमारे बीच एक ऐसा रिश्ता था जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, यह प्यार की भाषा थी, या ऐसा मुझे लगता था। लेकिन चीज़ें मेरी सोच से बिलकुल उलटकर आ गयी , मैं पूरी तरह से गलत थी! थोड़ी देर बाद, जब उसका छोटा भाई अब्राम तीन महीने का हो गया, तो मुझे स्कूल में काउंसलर से मिलने के लिए फिर से वही भारी कदम उठाने पड़े। इस बार, यह आरिक के खराब लेखन कौशल के बारे में था। उसकी प्यारी क्लास टीचर घबरा गई जब उसने देखा कि उसने अपनी पेंसिल टेबल पर रख दी और ज़िद करते हुए अपने हाथ जोड़ लिए जैसे कि कह रहा हो: “मैं नहीं लिखूँगा।” हमें इसका भी डर था। उसकी छोटी बहन अक्षा दो साल की उम्र में ही लिखने में माहिर थी, लेकिन आरिक पेंसिल भी नहीं पकड़ना चाहता था। उसे लिखना बिल्कुल पसंद नहीं था। पहला कदम काउंसलर से निर्देश प्राप्त करने के बाद, मैं प्रिंसिपल से मिली, जिन्होंने जोर देकर कहा कि अगर उसकी संचार क्षमता कमज़ोर बनी रही, तो हमें उसका गहन जांच करवानी चाहिए। उन दिनों मैं इसके बारे में सोच भी नहीं सकती थी। हमारे लिए, वह एक चमत्कारी बच्चा था। हमारे पहले बच्चे के साथ हमने बहुत कष्ट झेले थे और उसके बाद तीन गर्भपात हुए, लेकिन आरिक ने सभी बाधाओं को पार कर लिया था। डॉक्टरों ने जो भविष्यवाणी की थी, उसके विपरीत, वह पूर्ण अवधि में पैदा हुआ था। जन्म के समय उसकी महत्वपूर्ण अंग सामान्य थे। "यह बच्चा कुछ ज़्यादा ही बड़ा है!" डॉक्टर ने सी-सेक्शन ऑपरेशन के ज़रिए उसे बाहर लाते हुए कहा। हमने उसे लगभग साँस रोककर कदम दर कदम बढाते देखा, यह प्रार्थना करते हुए कि कुछ भी गलत न हो। आरिक ने जल्द ही अपने सभी मील के पत्थर हासिल कर लिए। हालाँकि, जब वह सिर्फ़ एक साल का था, तो मेरे पिता ने कहा था कि उसे स्पीच थेरेपी की ज़रूरत हो सकती है। सिर्फ एक साल की उम्र में यह जांच करना ठीक नहीं है, ऐसा कहकर मैं ने उस सुझाव को टाल दिया। सच तो यह था कि मेरे पास एक और समस्या का सामना करने की ताकत नहीं थी। हम पहले से ही अपने पहले बच्चे के साथ होने वाली सभी परेशानियों से थक चुके थे। अन्ना का जन्म निर्धारित समय से 27 सप्ताह पहले हुआ था। एन.आई.सी.यू. में कई दिनों तक रहने के बाद, तीन महीने की उम्र में उसे गंभीर मस्तिष्क क्षति का पता चला और उसे मिर्गी के दौरे पड़ने लगे। सभी उपचारों और दवाओं के बाद, हमारी 9 वर्षीय बेटी अभी भी सेरेब्रल पाल्सी और बौद्धिक विकलांगता से जूझ रही है। वह बैठने, चलने या बात करने में असमर्थ है। अनगिनत आशीर्वाद अपरिहार्य को टालने की एक सीमा होती है, इसलिए छह महीने पहले, हम अनिच्छा से आरिक को प्रारंभिक जांच परीक्षण के लिए ले गए। ADHD (अवधानता, अतिसक्रियता-आवेगशीलता) का निदान कठिन था। हमें इसे स्वीकार करने में कठिनाई हुई, लेकिन फिर भी हमने उसे स्पीच थेरेपी की प्रक्रिया से गुज़रने दिया। उस अवसर पर, वह सिर्फ कुछ ही शब्द बोल पा रहा था। कुछ दिन पहले, मैंने आरिक के साथ अस्पताल जाने और पूर्ण गहन जांच करने का साहस जुटाया। उन्होंने कहा कि उसे हल्का ऑटिज़्म है। जब हम जांच की प्रक्रिया से गुजर रहे थे, तो कई सवाल पूछे गए। मुझे आश्चर्य हुआ, इनमें से अधिकांश सवालों के लिए मेरी प्रतिक्रिया थी: "वह ऐसा करने में सक्षम नहीं था, लेकिन अब वह कर सकता है।" प्रभु की स्तुति हो! आरिक के अन्दर विराजमान पवित्र आत्मा की शक्ति से, सब कुछ संभव हुआ। मेरा मानना है कि स्कूल जाने से पहले हर दिन उसके लिए प्रार्थना करने और उसे आशीर्वाद देने से एक बड़ा बदलाव लाया। जब उसने बाइबल की आयतें याद करना शुरू किया तो यह बदलाव क्रांतिकारी था। और सबसे अच्छी बात यह है कि वह उन आयतों को ठीक उसी समय पढ़ता है जब मुझे उनकी ज़रूरत होती है। वास्तव में, परमेश्वर का वचन जीवित और सक्रिय है। मेरा मानना है कि परिवर्तन जारी है। जब भी मैं उदास महसूस करती हूँ, तो परमेश्वर मुझे आश्चर्यचकित कर देता है और उसे एक नया शब्द कहलवाता है। उसके नखरे के बीच, और जब सब कुछ बिखरता हुआ लगता है, मेरी छोटी लड़की, तीन साल की अक्षा, बस मेरे पास आती है और मुझे गले लगाती है और मुझे चूमती है। वह वास्तव में जानती है कि अपनी माँ को कैसे दिलासा देना है। मेरा मानना है कि परमेश्वर निश्चित रूप से हस्तक्षेप करेगा और हमारी सबसे बड़ी बेटी, अन्ना को भी ठीक करेगा, क्योंकि उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। परिवर्तन पहले से ही दिखाई दे रहा है - मिर्गी के दौरे की संख्या में काफी कमी आई है। हमारे जीवन की यात्रा में, हो सकता है कि चीजें उम्मीद के मुताबिक न चल रही हों, लेकिन ईश्वर हमें कभी नहीं छोड़ता या त्यागता। ऑक्सीजन की तरह जो ज़रूरी तो है लेकिन अदृश्य है, ईश्वर हमेशा मौजूद है और हमें वह जीवन देता है जिसकी हमें बहुत ज़रूरत है। आइए हम उससे चिपके रहें और अंधेरे में संदेह न करें। हमारी गवाही इस सच्चाई को उजागर करे कि हमारा ईश्वर कितना सुंदर, अद्भुत और प्रेममय है और वह हमें कैसे बदल देता है ताकि हम कहें: "मैं ... था, लेकिन अब मैं ... हूँ।"
By: Reshma Thomas
Moreइस बात का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करें कि ईश्वर स्वर्ग की बातों का संचार करने के लिए पृथ्वी की चीज़ों का उपयोग कैसे कर सकते हैं एक दिन जब मैं कूड़े के डिब्बे लाने के लिए अपने सामने वाले दरवाजे से बाहर निकली, तो मैं डर के मारे वहीं रुक गयी। घर के बगल में नाली के ढक्कन पर साँप की एक ताज़ा खाल पडी हुई थी। मैंने तुरंत अपने पति को बुलाया, क्योंकि मुझे सांपों से बहुत डर लगता है। जब यह स्पष्ट हो गया कि यह मृत साँप की खाल है, आस-पास कोई जीवित साँप नहीं है, तो मैंने निश्चिंत होकर ईश्वर से पूछा कि वह इस दिन मुझे क्या सबक सिखाने की कोशिश कर रहा है। पूरा मामला क्या है? मेरे शिक्षक लोग मुझे ‘गतिज शिक्षार्थी’ कहते हैं। मैं वस्तुओं के साथ घूमने या उनके साथ बातचीत करने से सबसे अच्छा सीख पाती हूं। हाल ही में, मैंने देखा है कि ईश्वर अक्सर भौतिक वस्तुओं के माध्यम से स्वयं को मेरे सामने प्रकट करता है। इस दिव्य शिक्षाशास्त्र का उल्लेख कैथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा में भी किया गया है। "ईश्वर अपने वचन के द्वारा सभी चीज़ों की रचना और संरक्षण करता है, वह सृजित वास्तविकताओं के द्वारा स्वयं का प्रमाण मानव को निरंतर प्रदान करता है।" (सी.सी.सी., 54) उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने इब्राहीम के लिए धूआं देने वाला अग्नि पात्र और धधकती मशाल, याकूब के लिए कुश्ती लड़ने वाला स्वर्गदूत, और मूसा के लिए जलती हुई झाड़ी भेजी। परमेश्वर ने नूह के पास जैतून की शाखा और फिर इंद्रधनुष, गियदोन के लिए कुछ ओस, और एलियाह के लिए रोटी और मांस के साथ कौआ भेजा। इब्राहीम का परमेश्वर, याकूब का परमेश्वर, और मूसा का परमेश्वर हमारा भी परमेश्वर है। समस्त सृष्टि का ईश्वर स्वर्ग की अदृश्य और अमूर्त वास्तविकताओं को संप्रेषित करने के लिए पृथ्वी के दृश्य, मूर्त पदार्थ का उपयोग क्यों नहीं करेगा? फादर जैक्स फिलिप ने लिखा है, "मांस और रक्त के प्राणियों के रूप में, हमें आध्यात्मिक वास्तविकताओं को प्राप्त करने के लिए भौतिक चीज़ों के समर्थन की आवश्यकता है। ईश्वर इसे जानता है, और यही बात ईश्वर के देह्धारण के पूरे रहस्य को समझाती है" (टाइम फॉर गॉड, पृष्ठ 58)। ईश्वर हमें लाइसेंस प्लेट या बम्पर स्टिकर के माध्यम से संदेश भेज सकते हैं। पिछले सप्ताह एक ट्रक के पीछे लिखे शब्द, "चलते रहो," मेरे मन में गूंज उठे। उन शब्दों ने मुझे उस धार्मिक अंतर्दृष्टि की याद दिलाई जो मैंने उसी सुबह सुनी थी - कि हम सुसमाचार साझा करते रहने के लिए बुलाये गए हैं । ईश्वर हमें सिखाने के लिए प्रकृति का भी उपयोग कर सकता है। हाल ही में पेड़ से चेरी या आलूबालू तोड़ते समय, मुझे याद आया कि फसल की बहुतायत, और मजदूरों की कमी कैसे होती हैं। एक तूफानी दिन मन में विचार ला सकता है कि "बड़ी संख्या में हमारे चारों ओर गवाह विद्यमान हैं" (इब्रानी 12:1)। एक सुंदर पक्षी या भव्य सूर्यास्त हमारी शिथिल आत्मा को स्फूर्ती देने के ईश्वर का तरीका हो सकता है। जब कभी मैं किसी चीज़ से विशेष रूप से आश्चर्यचकित होती हूं, तो मैं ईश्वर से पूछने की कोशिश करती हूं कि वह मुझे क्या सबक सिखा रहा होगा। उदाहरण के लिए, एक रात को, जब मेरी बेटी सो रही है या नहीं इसकी जांच करने के लिए मैं बिस्तर से उठने के बारे में मन में बहस कर रही थी, माताओं की संरक्षिका संत मोनिका का सम्मान करने वाला एक प्रार्थना कार्ड अचानक मेरे मेज़ से गिर गया। मैं तुरंत उठी और बेटी के पास जाकर उसकी हालचाल लेने लगी। या इसके अलावा, उस समय जब मैं देर रात या भोर के शुरुआती घंटों में उठी और हाल ही में मृत परिवार के सदस्य की तरफ से माला विनती की प्रार्थना करने के लिए बुलायी गयी और आसमान से सबसे शानदार उल्का पिंड को गिरते देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई। कभी-कभी ईश्वर अपना संदेश दूसरे लोगों के माध्यम से भेजता है। आपने कितनी बार किसी ऐसे व्यक्ति से कार्ड, फ़ोन कॉल या टेक्स्ट प्राप्त किया होगा जो आपके लिए आवश्यक प्रोत्साहन था? एक बार गर्मियों में, जब मैं बाइक पर यात्रा कर रही थी और बाइबल अध्ययन बंद करने की संभावना पर विचार कर रही थी, तो मेरी मुलाकात एक मित्र से हुई। अचानक, उसने यह तथ्य सामने रखा कि उसने अपना बाइबल अध्ययन जारी रखने की योजना बनाई है क्योंकि एक बार जब आप कुछ बंद कर देते हैं, तो उसे दोबारा शुरू करना बहुत कठिन होता है। ईश्वर हमें अनुशासित करने या अपने शिष्यत्व में हमारी प्रगति हेतु हमें मदद करने के लिए ठोस वस्तुओं का भी उपयोग कर सकता है। एक सुबह मेरी नज़र तीन बड़ी कीलों पर पड़ी। वे तीनों एक समान थे, लेकिन मैंने उन्हें तीन अलग-अलग स्थानों पर पाया था: एक गैस स्टेशन पर, एक मेरे घर के अन्दर की पगडण्डी पर, और एक सड़क पर। तीसरी कील देखने के बाद मैं रुकी और मैंने ईश्वर से पूछा कि वह मुझे क्या बताना चाह रहा था और मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने जीवन में किसी बात को लेकर पश्चाताप की आवश्यकता है। मैं उस समय को कभी नहीं भूलूंगी जब मैं बाहर निकली और तुरंत एक मक्खी मेरी आंख में घुस गई। मै चाहती हूँ कि उस दिन मैंने जो सबक सीखी उसकी कल्पना आप स्वयं करें । सीखने की शैली ईश्वर हमें हर समय सिखाता है, और वह सभी प्रकार के शिक्षार्थियों को समायोजित करता है। जो चीज़ एक व्यक्ति के लिए काम करती है वह दूसरे के लिए काम नहीं कर सकती। कुछ लोग ईश्वर की आवाज़ को स्पष्ट रूप से प्रार्थना सभा में सुनेंगे, अन्य लोग परम प्रसाद की आराधना में सुनेंगे, कोई और बाइबिल पढ़ते समय सुनेंगे, या अपनी निजी प्रार्थना के समय सुनेंगे। हालाँकि, ईश्वर हमेशा काम पर रहता है और हमारे विचारों, भावनाओं, छवियों, पवित्र ग्रन्थ के वाक्यांशों से, लोगों से, कल्पना से, ज्ञान के शब्दों से, संगीत से और हमारे दिन की प्रत्येक घटना के माध्यम से हमें लगातार सिखाता रहता है। जब ईश्वर भौतिक वस्तुओं के माध्यम से सम्प्रेषण करता है तो व्यक्तिगत रूप से मैं इसकी सराहना करती हूँ, क्योंकि मैं इस तरह से शिक्षा को बेहतर ढंग से याद रखती हूँ। आप सोच रहे होंगे कि मैंने साँप की खाल से क्या सीखा। इस से धर्मग्रंथ का निम्नलिखित वाक्यांश ध्यान में आया: “लोग पुरानी मशकों में नई अंगूरी को नहीं भरते। नहीं तो मशकें फट जाती हैं, अंगूरी बह जाती है, और मशकें बर्बाद हो जाती हैं। लोग नयी अंगूरी नयी मशकों में भरते हैं, इस तरह दोनों ही बची रहती हैं” (मत्ती 9:17)। पवित्र आत्मा, आज तू हमें जो भी सबक सिखा रहा है, उसके बारे में अधिक जागरूक होने में हमारी मदद कर।
By: डेनीस जैसेक
Moreमेरे सामने एक पुरुष का सिर और कंधा दिखाई दे रहा था, और इस पुरुष का बाल कन्धों तक लटका हुआ था और उसके माथे के ऊपर कुछ लकीरें थीं | शाम हो चुकी थी| मैं उस तात्कालिक प्रार्थनालय में बैठी थी जिसे हमने वार्षिक धर्मप्रान्तीय युवा आत्मिक साधना के लिए खड़ा किया था। मैं थक गयी थी। सप्ताह के अंत के तीन दिवसीय कार्यक्रम के आयोजन से, युवा सेवकाई में कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारियों से; और इसके अलावा मेरी गर्भावस्था की पहली तिमाही के कारण मैं पूरी तरह थक चुकी थी। मैं परम प्रसाद की आराधना में यह घंटा बिताने केलिए स्वयं आगे आयी थी। चौबीस घंटे की आराधना का अवसर साधना में भाग लेने वालों के लिए एक बड़ा आकर्षण था। युवाओं को परमेश्वर के साथ समय बिताते हुए देखना मेरे लिए भी एक गहन अनुभव था। लेकिन मैं थक चुकी थी| मैं जानती थी कि मुझे यहां समय बिताना चाहिए और फिर भी, मुझे लगा कि समय धीरे धीरे सरकता जा रहा है । मैं अपने विश्वास की कमी के लिए खुद को डांटती रही । यहाँ मैं येशु की उपस्थिति में थी, और मैं इतनी थक गयी थी कि अपनी थकावट के आलावा मुझे और कुछ नहीं सूझ रही थी| मैं वहां बिना सोची समझी बैठी थी और मुझे आश्चर्य होने लगा कि क्या मेरा विश्वास बौद्धिक स्तर पर ही सीमित है या उससे अधिक कुछ है । अर्थात विश्वास की बातें मैं केवल दिमाग से जानती थी दिल से नहीं | मेरा जीवन एक नए मोड़ पर बीते समय को देखें तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए थी। मैं हमेशा से कुछ हद तक अकादमिक विचारधारा वाली रही हूं-मुझे सीखना पसंद है। जीवन के महत्वपूर्ण और गहन विषयों को पढ़ने और उन पर चर्चा करने से मेरी आत्मा को प्रेरणा मिलती है । दूसरों के विचारों और राय को सुनने से जिस दुनिया में हम रहते हैं, उस दुनिया पर विचार करने या उस पर पुनर्विचार करने का मुझे अवसर मिलता है। सीखने की इस जूनून के चलते ही मैं कैथलिक आस्था में गहराई से डूबती चली गयी। मैं इसे 'वापसी' कहने में संकोच करती हूं क्योंकि मैंने अपनीआस्था का अभ्यास कभी नहीं छोड़ा था, लेकिन मैं निश्चित रूप से सतही स्तर की कैथलिक थी। हाई स्कूल की पढ़ाई के उपरांत कॉलेज जीवन के मेरे पहले वर्ष के दौरान, मेरे जीवन की दिशा अचानक बदल गयी। मेरे बचपन की पल्ली में एक धर्म समाज की साध्वी लोग आयीं और धार्मिक शिक्षा का कार्य उन लोगों ने संभाला। कैथलिक शिक्षा और सुसमाचार-प्रचार के लिए उनका उत्साह अद्भुत था - उनके उपदेशों के कारण और उनके साथ नियमित बातचीत के कारण एक पक्का कैथलिक होने का मेरा दंभ टूट गया। जल्द ही मैं कैथलिक धर्म की एक उत्साही और जिज्ञासु छात्रा बन गयी। जितना अधिक मैंने सीखा उतना ही अधिक मुझे एहसास हुआ कि मुझे और सीखने की आवश्यकता है। इस समझ ने मुझे नम्र और ऊर्जावान व्यक्ति बनाया। मैंने सोमवार से लेकर शनिवार तक मिस्सा बलिदान में भाग लिया। सप्ताह भर पवित्र संस्कार की आराधना और प्रार्थना सभाएं मेरे रोजमर्रा के कार्यक्रम में शामिल हो गयीं और मैंने आत्मिक साधना में भी भाग लेना शुरू किया। इन सबकी सुखद परिसमाप्ति अंतर्राष्ट्रीय विश्व युवा दिवस में मेरी भागीदारी से हुई। मैंने पुरोहिताभिषेक की धर्मविधि, तेलों के अभिषेक का पवित्र मिस्सा आदि समारोहों में भाग लेकर उन सबका आनंद लिया। अधिकांशतः मैं स्वयं ही इनमें भाग लेती थी। अप्राप्त कड़ी ? मैंने अपने विश्वास के बारे में ज्ञान बढ़ाया| पत्रकारिता और युवा सेवकाई कार्य के माध्यम से मैंने अपनी बुलाहट को समझा । मैंने विश्वविद्यालय की डिग्रियाँ बदलीं, उस शख्स से मिली जो अब मेरे पति हैं , और मातृत्व की नयी बुलाहट की शुरुआत की| और फिर भी, विश्वास में डुबकी लेने के पांच साल बाद भी, मेरा विश्वास व्यावहारिक कम बल्कि अकादमिक या बौद्धिक अधिक था। जो ज्ञान मैंने अर्जित किया था वह अभी तक मेरी आत्मा में उतरना शुरू नहीं हुआ था। मैंने वही किया जिसे दुनिया की नज़र में पूरा करने की आवश्यकता थी, लेकिन मैंने अपने हृदय में परमेश्वर के प्रति उस अगाध प्रेम को 'महसूस' नहीं किया। मै इस आस्था सम्बन्धी कार्य को बाकी कार्यों के समान बस निभा रही थी। इस थकावट से तंग आकर फिर मैंने वही किया जो मुझे शुरू से ही करना चाहिए था। मैंने येशु से मदद मांगी। मैंने येशु से प्रार्थना की कि वह मेरे विश्वास को, और उसके प्रति मेरे प्यार को वास्तविक और मूर्तरूप देने में मदद करे। परछाइयाँ बढ़ती गईं, और पवित्र संस्कार की सोने से अलंकृत प्रदर्शिका के दोनों ओर की मोमबत्तियाँ टिमटिमाने लगीं। मैं अपने प्रभु की ओर निहारती रही, अपने मन को केवल उसी पर केंद्रित रखने की कोशिश करती रही। उसकी उपस्थिति में प्राप्त प्रेम और आनंद पवित्र संस्कार पर छा रही परछाइयों से उसकी दाहिनी ओर एक अद्भुत तस्वीर उभरती गयी जो हमारे प्रभु येशु ख्रीस्त के समान प्रतीत हो रही थी। यह उन पुराने विक्टोरियन प्रोफ़ाइल चित्रों जैसा था, जो परछाई में प्रभु के चेहरे की छवि जैसी स्पष्ट तस्वीर थी। मेरे सामने एक पुरुष का सिर और कंधा दिखाई दे रहा था, उसका सिर झुका हुआ था और वह बाईं ओर देख रहा था। पृष्ठभूमि की कुछ परछाइयों ने मिलकर अस्पष्ट आकृतियाँ बना ली थीं और इसमें कोई संदेह नहीं था कि इस पुरुष का बाल कन्धों तक लटका हुआ था और उसके माथे के ऊपर कुछ लकीरें थीं। यह वही था। क्रूस पर लटकाया गया प्रभु। वहाँ, पवित्र संस्कार की प्रदर्शिका पर, येशु की वास्तविक उपस्थिति को अतिव्यापित करते हुए, मेरे उद्धारकर्ता की छायादार रूपरेखा थी, जो क्रूस पर मेरे लिए अपना प्यार बरसा रहा था। और मैं उसके प्रेम और आनंद में सराबोर थी | प्रेम में सुस्थिर मैं इतनी अभिभूत और अचंभित हो गयी थी कि मैंने प्रभु के साथ निर्धारित समय से अधिक समय बिताया। मेरी थकान दूर हो गई और मैं प्रभु की प्रेममय उपस्थिति का आनंद लेना चाहती थी। मैं कभी भी येशु से उतना प्यार नहीं कर सकती जितना वह मुझसे प्यार करता है, लेकिन मैं नहीं चाहती कि वह कभी भी मेरे प्यार पर संदेह करे। पंद्रह साल पहले की उस शाम, प्रभु येशु ने हमारे विश्वास पर एक महत्वपूर्ण सच्चाई प्रदर्शित की थी और वह यह थी कि यदि हमारा विश्वास उसके प्रेम में सुरक्षित रूप से सुस्थिर नहीं है तो वह फलदायी नहीं है। कुछ बातें जो सही हैं उन्हें वैसा करना सही है, लेकिन उन्हीं बातों को परमेश्वर के प्रेम के लिए करना इस संदर्भ में और भी सार्थक हो जाता है |
By: Emily Shaw
Moreहम में से कई लोग लूकस के सुसमाचार (लूकस 18:9-14) के दृष्टांत से परिचित हैं जो फरीसी और चुंगी लेनेवाले की प्रार्थनाओं को नाटकीय और एक दूसरे से विपरीत रूप से प्रस्तुत करता है। जब हम उनकी प्रार्थनाओं की तुलना करते हैं, तो शायद हम अपनी पहचान फरीसी की प्रार्थना के साथ कर सकते हैं जो ईश्वर को धन्यवाद देता है कि वह उस चुंगी लेने वाले की तरह पापी नहीं था। उस प्रार्थना में निहित आत्मतुष्टि के भाव तथा श्रेष्ठता के भाव को पहचाने बिना ही हमने स्वयं को उदार समझते हुए ऐसी प्रार्थना की होगी। इसके विपरीत येशु चुंगी लेने वाले की विनम्र प्रार्थना की प्रशंसा करते हैं जिसकी विनम्रता और ईमानदारी उसे न्याय के साथ सानंद घर जाने की अनुमति देती है। यदि हम चुंगी लेने वाले का रवैया अपनाएंगे, तो हम अन्य लोगों के साथ अन्याय नहीं करेंगे। यदि हम ईमानदारी से स्वयं को पापी के रूप में देखते हैं, तो हम दूसरे पर दोष कैसे लगा सकते हैं? दूसरों को दोष देना या उनकी अंतिम नियति का आकलन करना श्रेष्ठता के दृष्टिकोण यानि अहंकार की भावना से आता है और हम कह सकते हैं कि यह अहंकार ही पहला पाप और सब से बड़ा पाप था। हमारा प्रभु अंतिम क्षण तक दया का द्वार हमेशा खुला रखता है। जैसे-जैसे हम अपना दिन गुजारते हैं, क्या हम यह विचार करना बंद कर देते हैं कि कितनी बार हम बाहरी धारणाओं के आधार पर दूसरों का मूल्यांकन करते हैं, जब कि प्रभु उनके दिलों के भीतर देखते हैं। क्या आप कभी समाचार देखते या पढ़ते समय स्वयं को दूसरों की निंदा करते हुए पाते हैं? कितनी बार किसी व्यक्ति की जाति, धर्म, यौन रुझान, या कोई अन्य गुण जो हम से भिन्न होता है, हमें उस पर दोष लगाने या नकारात्मक निर्णय देने का कारण बनता है? दुर्भाग्य की बात है कि हम में से बहुत से लोग अपने कार्यों और प्रेरणाओं की बारीकी से जांच करने में विफल रहते हुए दूसरों को आंकने की गंभीरता का एहसास नहीं करते हैं। सुसमाचार में येशु बहिष्कृतों और पापियों को गले लगाते हैं। वह उन लोगों के प्रति प्रेम और स्वीकृति दिखाता है जिन्हें स्व-धर्मी फरीसियों और शास्त्रियों ने अस्वीकार कर दिया था। जब भी हम उन लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं जो हम से अलग हैं या जिनके कार्यों से हमें ठेस पहुँचती है, तब पापियों के प्रति येशु की करुणा हमारे दिलों में भर जानी चाहिए। जब हम विनम्रता पूर्वक महसूस करते हैं कि हम वास्तव में पापी हैं, तो हम खुद को ईश्वर की दया पर छोड़ देंगे और महसूस करेंगे कि कलवारी पर येशु ने जो खून बहाया था वह हमारे लिए, हमारे दुश्मनों केलिए और उन लोगों केलिए बहाया गया था जिनके लिए हम न्याय करने के इच्छुक हैं। वे भी बहुमूल्य आत्माएँ हैं जिन्हें येशु मुक्त करना चाहते हैं। लोगों केलिए जब हम प्रार्थना करते हैं, तो आइए सब से पहले उनके प्रति अपना अभिवृति देखें। क्या हमारा रवैया करुणामय है या पूरी तरह से आलोचनात्मक है? प्रेमपूर्ण हृदय से निकली प्रार्थना न्याय से उत्पन्न प्रार्थना से अधिक लाभकर होगी। आइए हम प्रभु से उन पलों केलिए क्षमा मांगें, जब हम ने दूसरों के साथ अन्याय किया था और उस से विनती करें कि वह हमें अपने जैसा दयालु हृदय प्रदान करें।
By: Susan Uthup
Moreनासा के साथ चार अलग-अलग शटल मिशन पर गए डॉ. थॉमस डी. जोन्स के साथ एक विशेष साक्षात्कार। उन मिशनों में से एक पर, वे वास्तव में पवित्र यूखरिस्त को अपने साथ ले जाने में सक्षम थे! हमें इस बारे में बताएं कि अंतरिक्ष में सितारों को और नीचे पृथ्वी को देखकर कैसा लगता था। येशु में आपका विश्वास इस अनुभव द्वारा कैसे प्रभावित हुआ ? हर अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में उड़ान भरने के अपने पेशेवर सपने को साकार करने की उम्मीद करता है, उसी तरह मुझे भी लगभग 30 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा। बचपन में हवा में उड़ने का सपना देखा करता था तो मेरी पहली उड़ान से इसी बचपन के सपने का साकार हो गया था। हमारे गृह ग्रह पृथ्वी के आसपास के ब्रह्मांड के इस विशाल दृश्य को देखकर, मुझे यह सोचने का मौका मिला कि मैं वहां क्यों था। यह वास्तव में ब्रह्मांड की अविश्वसनीय सुंदरता को और हमारे गृह ग्रह को इसकी सभी प्यारी विविधता में देखने का एक ऐसा भावनात्मक अनुभव था, - वास्तव में दिल थामकर मैं ने इन अद्भुत दृश्यों को निहारा। शारीरिक रूप से वहाँ रहने का अवसर देने के लिए और ईश्वर की कृपा और उपस्थिति से अभिभूत होकर मैंने लगातार ईश्वर के प्रति अपना आभार प्रकट किया। आप उन अंतरिक्ष यात्रियों में से एक के रूप में जाने जाते हैं जो पवित्र यूखरिस्त को अंतरिक्ष में लाने में सक्षम थे। हम सभी विश्वासियों के लिए इससे बड़ी प्रेरणा मिलती है। क्या आप वह पूरा अनुभव साझा कर सकते हैं? यह निश्चित रूप से इसमें भाग लेने वाले हम सभी के लिए आश्चर्यजनक था। कोई भी व्यक्ति न अंतरिक्ष से अधिक दूर कहीं भी जा सकता है और न अपने आध्यात्मिक जीवन को भूल सकता है। विश्वास के कारण मैं पृथ्वी पर सफल था और उसी विश्वास से मैं अंतरिक्ष में सफल होने में मदद की उम्मीद कर रहा था। 1994 में मेरी पहली उड़ान एंडेवर नामक शटल में, दो अन्य कैथलिक अंतरिक्ष यात्री भी थे। जब हम 11 दिवसीय मिशन की तैयारी के लिए एकत्रित हुए, तो हमने इस बारे में बात की कि पवित्र यूखरिस्त को अपने साथ अंतरिक्ष में ले जाना कितना अद्भुत होगा। चूँकि उड़ान में हमारे पायलट, केविन चिल्टन, पवित्र भोज के एक असाधारण अनुष्ठाता थे, इसलिए हम अपने पादरी से परम पवित्र संस्कार को अपने साथ लाने की अनुमति प्राप्त करने में सफल हुए। ग्यारह दिन की उड़ान के हर पल को बड़ी सूक्ष्मता से निर्धारित किया गया था, लेकिन लगभग सात दिनों के बाद जब हम अपने मिशन में सहज हो चुके थे, तब हमारे कैथलिक कमांडर, सिड गुटियरेज़ कम्युनियन सेवा के लिए इस व्यस्त शेड्यूल में दस मिनट का समय ढूँढने में कामयाब हुए। इसलिए, उस रविवार को (अंतरिक्ष में वह हमारा दूसरा रविवार था) हमने मिशन के सभी कामों से विराम लिया और कॉकपिट में अकेले दस मिनट उस ईश्वर के साथ समय बिताया जिसने यह सब संभव बनाया था, और हमने पवित्र परम प्रसाद को ग्रहण किया। वास्तव में, इसके द्वारा यह पुष्टि हो रही थी कि हमारे बीच उनकी उपस्थिति के बिना हम उस मुकाम तक कभी नहीं पहुंच सकते थे। हमारे विश्वास-जीवन को अंतरिक्ष में लाना और यह जानना कि प्रभु वहां, शारीरिक रूप से हमारे साथ है, यह वास्तव में संतोषजनक था। क्या विज्ञान और आस्था को एक साथ लाना आप के लिए मुश्किल था? क्या आप विज्ञान और आस्था के बीच संबंध के बारे में विस्तार से बता सकते हैं? अपने पेशेवर करियर के दौरान, मैंने कई ऐसे वैज्ञानिकों को जाना है जो आध्यात्मिक हैं, और उनकी अपनी आस्था की परम्पराएं हैं। यहीं उत्तरी वर्जीनिया में, मेरे अपने चर्च में कई कैथलिक वैज्ञानिकों और इंजीनियरों से मैं मिला हूं, जो मजबूत विश्वास के जीवन को जीते हैं। वे ईश्वर की सृष्टि में विश्वास करते हैं, और बाइबिल की प्रेरणा से ब्रह्मांड की समझ रखते हैं। मुझे लगता है कि ज्यादातर लोगों के जीवन में कुछ आध्यात्मिक तत्व होते हैं। मैं ऐसे अंतरिक्ष यात्रियों को जानता हूं जो औपचारिक रूप से धार्मिक नहीं हैं, लेकिन वे सभी अंतरिक्ष यात्रा के आध्यात्मिक अनुभव से प्रभावित थे। इसलिए मैंने देखा है कि ब्रह्मांड और हमारे आस-पास की प्राकृतिक धरती और सृष्टि को समझने के तरीके के संदर्भ में अधिकांश लोग खुली और उदार समझ रखते हैं। सभी मनुष्यों की तरह वैज्ञानिक भी ब्रह्मांड की प्रकृति के बारे में उत्सुक हैं और इससे क्या सीख सकते हैं, इस बारे में बहुत ही उत्सुक हैं। मेरे लिए, यह एक संकेत है कि विज्ञान और अध्यात्म साथ-साथ चलते हैं। प्रकृति कैसे कार्य करती है, कैसे ब्रह्मांड को एक साथ रखा गया है और इसे कैसे बनाया गया है, इन सब पर तथा प्रकृति के प्रति हमारी जिज्ञासा और रुचि हमें दी गई थी, क्योंकि हम ईश्वर के स्वरूप और प्रतिछाया में बनाए गए हैं। यह जिज्ञासा ईश्वर के व्यक्तित्व का हिस्सा है जो हमें प्रदान किया गया है। इसलिए मुझे लगता है कि प्राकृतिक दुनिया के बारे में सच्चाई की यह खोज मनुष्य के रूप में हमारी सहज प्रकृति का एक हिस्सा है। मेरा मानना है कि ज्ञान की खोज एक ऐसी चीज है जो ईश्वर को बहुत आनंद देती है – ईश्वर ने ब्रह्मांड को किस प्रकार एक साथ रखा, इस रहस्य की तलाश में उसकी सृष्टि, विशेषकर मानव, लगा रहता है तो ईश्वर का आनंद और बढ़ता होगा। ध्यान रहे, वह इसे गुप्त रखने या भेद के रूप में रखने की कोशिश नहीं कर रहा है। वह सिर्फ यह चाहता है कि हम अपने प्रयासों, सरलता और जिज्ञासा के माध्यम से इसका अनावरण करें। तो, मेरे लिए, विज्ञान, प्रकृति और अध्यात्म के बीच बहुत अधिक संघर्ष नहीं है। मुझे लगता है कि उन्हें अलग करने की कोशिश कर रहे लोग मानव स्वभाव का आधा हिस्सा बौद्धिक या तर्कसंगत हिस्से में और दूसरा आधा आध्यात्मिक हिस्से में विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं। बेशक, ऐसा नहीं किया जा सकता है। हर व्यक्ति ऐसा इंसान है जिसकी प्रकृति को अलग अलग नहीं किया जा सकता है। अपने अंतरिक्ष अभियानों में आप कई मायनों में मानवीय उपलब्धि के निचोड़ या सार को पूरा कर रहे थे। वास्तव में कुछ महान कार्य करना, और वह भी परमेश्वर की सृष्टि की महिमा और प्रताप को इतनी अधिक विस्तार में सामना करना — परमेश्वर की उस महानता की तुलना में अपनी नगण्यता को पहचानते हुए भी इतना कुछ हासिल करना, यह कैसा अनुभव था? मेरे लिए यह सब मेरे आखिरी मिशन पर निश्चित रूप ले रहा था। मैं अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन बनाने में मदद कर रहा था, डेस्टिनी नामक एक विज्ञान प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए तीन स्पेस वॉक कर रहा था। अपने आखिरी स्पेसवॉक के अंत के करीब, मैं स्पेस स्टेशन के बिल्कुल सामने के छोर पर था। चूंकि मैं अपने निर्धारित शेड्यूल से आगे था, नासा के मिशन कंट्रोल ने मुझे वहां लगभग पांच मिनट तक घूमने की अनुमति दी। अपनी उँगलियों से स्पेस स्टेशन के सामने के हिस्से को पकड़ते हुए, मैं चारों ओर घूमने में सक्षम था ताकि मैं अपने आस-पास के अंतरिक्ष की विशालता को देख सकूं। मेरे पैरों के 220 मील सीधे नीचे प्रशांत महासागर के गहरे नीले रंग में, मैंने पृथ्वी को देखा। मैं वहाँ तैर रहा था और ऊपर की ओर मेरे सिर के ऊपर एक हजार मील दूर, अंतहीन, काला आकाश और क्षितिज की ओर देख रहा था। मुझसे लगभग 100 फीट ऊपर, स्पेस स्टेशन अपने सौर पैनलों से परावर्तित सूर्य के प्रकाश के साथ सोने की तरह चमक रहा था, उस समय हम लोग चुपचाप दुनिया के फेरे में एक साथ मंडरा रहे थे। यह अद्भुत दृश्य इतना अविश्वसनीय रूप से सुंदर था कि मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैं इस भावना से अभिभूत था, “यहाँ मैं हूँ, इस अंतरिक्ष स्टेशन पर एक उच्च प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री, जो पृथ्वी के चारों ओर मंडरा रहा है, फिर भी मैं इस विशाल ब्रह्मांड की तुलना में सिर्फ एक अदना सा इंसान हूँ।“ ईश्वर ने मेरे लिए पर्दे को थोड़ा पीछे खींच लिया, जिससे मुझे व्यक्तिगत रूप से उस शानदार प्रतापपूर्ण और भव्य विशालता को देखने का मौका मिला। मैंने महसूस किया, "हां, तुम बहुत खास हो क्योंकि तुम्हें यह दृश्य देखने को मिल रहा है", लेकिन उसी समय मुझे याद दिलाया गया कि हम सभी ईश्वर के द्वारा बनाए गए इस विशाल ब्रह्मांड में कितने महत्वहीन हैं। एक ही समय में अपने महत्व को और अपनी नगण्यता को अनुभव करना ईश्वर की ओर से एक विशेष उपहार था। मैंने रोमांचित होकर, मेरे साथ इस दृश्य को साझा करने के लिए, प्रभु को धन्यवाद दिया, तब सचमुच मेरी आंखों में आंसू भर आये। बहुत कम मनुष्यों के पास पृथ्वी को उस दृष्टिकोण से देखने का अनुभव और विशेषाधिकार मिला होगा, और यह सब प्रभु की कृपा से थी। ------------------------------------------ इस समय दुनिया में बहुत भ्रम है... बहुत अँधेरा और पीड़ा है; लेकिन जब आप दुनिया को या तो अंतरिक्ष में उस अद्वितीय और अनुकूल प्रेक्षण स्थान से देखते हैं, या अब आपके जीवन की वर्तमान स्थिति में होकर देखते हैं, आपको किस तरह की आशा मिल रही है? ईश्वर ने हमें बहुत जिज्ञासु दिमाग दिया है। मुझे लगता है कि यही बात मुझे सबसे अधिक प्रेरणा देती है। हमारे पास यह सहज जिज्ञासा है, और इसने हमें समस्या के समाधानकर्ता और खोजकर्ता बना दिया है। इसलिए, आज हम जिन सभी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, चाहे वह महामारी हो, या युद्ध का खतरा हो, या दुनिया भर में सात अरब लोगों को भोजन खिलाने की चुनौती हो, हमारे पास वह कौशल है जो हमें दिया गया है और उस कौशल का सदुपयोग करके इन समस्याओं को हल करने के लिए हम बुलाये गए हैं। यह एक विशाल ब्रह्मांड है, और यह संसाधनों से भरा हुआ है। यह हमें चुनौती देता है, लेकिन अगर हम अपने घर की दुनिया से परे सौर मंडल और ब्रह्मांड की ओर देखें, तो ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिनका हम उपयोग कर सकते हैं। चंद्रमा और आस-पास के क्षुद्रग्रहों पर उपलब्ध विशाल भौतिक संसाधन उन चीज़ों के पूरक हो सकते हैं जिन्हें हम पृथ्वी पर पाते हैं। सौर ऊर्जा की एक विशाल आपूर्ति है जिसे अंतरिक्ष से निकाला जा सकता है और दुनिया के लिए बीमित किया जा सकता है ताकि सभी को कामयाब होने के लिए आवश्यक ऊर्जा और बिजली की आपूर्ति करने में मदद मिल सके। हमारे पास अक्सर पृथ्वी से टकरानेवाले दुष्ट क्षुद्रग्रहों को दूर भगाने का कौशल है, और चूँकि हमारे पास अंतरिक्ष कौशल और हमारे ग्रह की रक्षा करने का एक तरीका विकसित करने के लिए दिमाग है, इसलिए हम इन सब के माध्यम से भयानक प्राकृतिक आपदाओं को रोक सकते हैं। इसलिए, यदि हम अपने द्वारा हासिल किए गए कौशल का उपयोग करते हैं, और खुद को इस कार्य में लगाते हैं, तो हमें डायनासोर के रास्ते पर जाने की ज़रूरत नहीं है । हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो हमें इन समस्याओं को हल करने के लिए अपनी जिज्ञासा और बुद्धि का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसलिए मैं बहुत आशावादी हूं कि अपने कौशल और हमारे द्वारा विकसित की जाने वाली तकनीक को लागू करके हम इन सभी चुनौतियों से आगे रह सकते हैं। उदाहरण केलिए, उस वैक्सीन को देखिये, जिसे हमने इस वर्ष ही विषाणु से लड़ने के लिए विकसित किया है। यह इस बात का प्रतीक है कि जब हम किसी चीज़ पर अपना दिमाग लगाते हैं, तब हम क्या क्या हासिल कर सकते हैं, चाहे वह किसी पुरुष को चंद्रमा पर रखने की बात हो या पहली महिला को मंगल ग्रह पर भेजने की बात हो। मुझे लगता है कि हम भविष्य के लिए भी अच्छी स्थिति में हैं।
By: Dr. Thomas D Jones
Moreसबसे महान प्रचारक, बेशक, येशु स्वयं हैं, और एम्माऊस के रास्ते पर शिष्यों के बारे में लूकस के शानदार वर्णन से बेहतर येशु की सुसमाचार प्रचार तकनीक की कोई और वर्णन नहीं है। गलत रास्ते पर दो लोगों के जाने के वर्णन से कहानी शुरू होती है। लूकस के सुसमाचार में, यरूशलेम आध्यात्मिक गुरुत्वाकर्षण का केंद्र है - अंतिम भोज, क्रूस पर मृत्यु, पुनरुत्थान और पवित्र आत्मा के उतर आने का स्थान यही है। यह वह आवेशित स्थान है जहाँ उद्धार की पूरी योजना का पर्दाफाश होता है। इसलिए राजधानी से दूर जाने के कारण, येशु के ये दो पूर्व शिष्य परम्परा के विपरीत जा रहे हैं। येशु उनकी यात्रा में शामिल हो जाते हैं - हालाँकि हमें बताया जाता है कि उन्हें पहचानने से शिष्यों को रोका गया है - और येशु उन शिष्यों से पूछते हैं कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं। अपने पूरे सेवा कार्य के दौरान, येशु पापियों के साथ जुड़े रहे। यार्दन नदी के कीचड़ भरे पानी में योहन के बपतिस्मा के माध्यम से क्षमा मांगने वालों के साथ येशु कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे; बार-बार, उन्होंने बदनाम लोगों के साथ खाया पिया, और यह वहां के धर्मी लोगों के नज़र में बहुत ही निंदनीय कार्य था; और अपने जीवन के अंत में, उन्हें दो चोरों के बीच सूली पर चढ़ा दिया गया। येशु पाप से घृणा करते थे, लेकिन वे पापियों को पसंद करते थे और लगातार उनकी दुनिया में जाने और उनकी शर्तों पर उनसे जुड़ने के लिए तैयार रहते थे। और यही पहली महान सुसमाचारीय शिक्षा है। सफल सुसमाचार प्रचारक पापियों के अनुभव से अलग नहीं रहते, उन पर आसानी से दोष नहीं लगाते, उन पर फैसला पारित नहीं करते, उनके लिए प्रार्थना दूर से नहीं करते; इसके विपरीत, वे उनसे इतना प्यार करते हैं कि वे उनके साथ जुड़ जाते हैं और उनके जैसे चलने और उनके अनुभव को महसूस करते हैं। येशु के जिज्ञासु प्रश्नों से प्रेरित होकर, यात्रियों में से एक, जिसका नाम क्लेओपस था, नाज़रेथ के येशु के बारे में सभी 'बातें' बताता है: "वे ईश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे। हमारे महायाजकों और शासकों ने उन्हें प्राणदंड दिलाया और क्रूस पर चढ़ाया। हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करनेवाले थे। आज सुबह, ऐसी खबरें आईं कि वे मृतकों में से जी उठे हैं।" क्लेओपस के पास सारे सीधे और स्पष्ट 'तथ्य' हैं; येशु के बारे में उसने जो कुछ भी कहा है, उसमें एक भी बात गलत नहीं है। लेकिन उसकी उदासी और यरूशलेम से उसका भागना इस बात की गवाही देता है कि वह पूरी तस्वीर को नहीं देख पा रहा है। मुझे न्यू यॉर्कर पत्रिका के कार्टून बहुत पसंद हैं, जो बड़ी चतुराई और हास्यास्पद तरीके से बनाए जाते हैं, लेकिन कभी-कभी, कोई ऐसा कार्टून होता है जिसे मैं समझ नहीं पाता। मैं सभी विवरणों को समझ लेता हूँ, मैं मुख्य पात्रों और उनके आस-पास की वस्तुओं को देखता हूँ, मैं कैप्शन को समझ लेता हूँ। फिर भी, मुझे समझ में नहीं आता कि यह हास्य कैसे पैदा करता है। और फिर एक पल आता है जब मुझे समझ में आता है: हालाँकि मैंने कोई और विवरण नहीं देखा है, हालाँकि पहेली का कोई नया टुकड़ा सामने नहीं आया है, लेकिन मैं उस पैटर्न को समझ जाता हूँ जो उन्हें एक सार्थक तरीके से एक साथ जोड़ता है। एक शब्द में, मैं कार्टून को 'समझ' जाता हूँ। क्लेओपस का वर्णन सुनकर, येशु ने कहा: “ओह, निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मंदमति हो।” और फिर येशु उनके लिए धर्मग्रन्थ के प्रतिमानों का खुलासा करते हैं, जिन घटनाओं को उन्होंने देखा है, उनका अर्थ बताते हैं। अपने बारे में कोई नया विवरण बताए बिना, येशु उन्हें रूप, व्यापक योजना और सरंचना, और उसका अर्थ दिखाते हैं - और इस प्रक्रिया के माध्यम से वे उसे 'समझना' शुरू करते हैं: उनके दिल उनके भीतर जल रहे हैं। यही दूसरी सुसमाचार शिक्षा है। सफल प्रचारक धर्मग्रन्थ का उपयोग दिव्य प्रतिमानों और विशेषकर उस प्रतिमान को प्रकट करने के लिए करते हैं, जो येशु में देहधारी हुआ है। इन प्रतिमानों का स्पष्टीकरण किये बिना, मानव जीवन एक अस्तव्यस्तता है, घटनाओं का एक धुंधलापन है, अर्थहीन घटनाओं की एक श्रृंखला है। सुसमाचार का प्रभावी प्रचारक बाइबल का व्यक्ति होता है, क्योंकि पवित्र ग्रन्थ वह साधन है जिसके द्वारा हम येशु मसीह को 'पाते' हैं और उसके माध्यम से, हमारे अपने जीवन को भी। जब वे एम्माउस शहर के पास पहुँचते हैं, तो वे दोनों शिष्य अपने साथ रहने के लिए येशु पर दबाव डालते हैं। येशु उनके साथ बैठते हैं, रोटी उठाते हैं, आशीर्वाद की प्रार्थना बोलते हैं, उसे तोड़ते हैं और उन्हें देते हैं, और उसी क्षण वे येशु को पहचान लेते हैं। हालाँकि, वे पवित्र ग्रन्थ के हवाले से देखना शुरू कर रहे थे, फिर भी वे पूरी तरह से समझ नहीं पाए थे कि वह कौन था। लेकिन यूखरिस्तीय क्षण में, रोटी तोड़ने पर, उनकी आँखें खुल जाती हैं। येशु मसीह को समझने का अंतिम साधन पवित्रग्रन्थ नहीं बल्कि पवित्र यूखरिस्त है, क्योंकि यूखरिस्त स्वयं मसीह है, जो व्यक्तिगत रूप से और सक्रिय रूप से उसमें मौजूद हैं। यूखरिस्त पास्का रहस्य का मूर्त रूप है, जो अपनी मृत्यु के माध्यम से दुनिया के प्रति येशु का प्रेम, सबसे हताश पापियों को बचाने के लिए पापी और निराश दुनिया की ओर ईश्वर की यात्रा, करुणा के लिए उनका संवेदनशील हृदय है। और यही कारण है कि यूखरिस्त की नज़र के माध्यम से येशु सबसे अधिक पूर्ण और स्पष्ट रूप से हमारी दृष्टि के केंद्र में आते हैं। और इस प्रकार हम सुसमाचार की तीसरी महान शिक्षा पाते हैं। सफल सुसमाचार प्रचारक यूखरिस्त के व्यक्ति हैं। वे पवित्र मिस्सा की लय की लहरों में बहते रहते हैं; वे यूखरिस्तीय आराधना का अभ्यास करते हैं; जिन्होंने सुसमाचार को स्वीकार किया है, उन लोगों को वे येशु के शरीर और रक्त में भागीदारी के लिए आकर्षित करते हैं। वे जानते हैं कि पापियों को येशु मसीह के पास लाना कभी भी मुख्य रूप से व्यक्तिगत गवाही, या प्रेरणादायक उपदेश, या यहाँ तक कि पवित्रग्रन्थ के व्यापक सरंचना के संपर्क का मामला नहीं होता है। यह मुख्य रूप से यूखरिस्त की टूटी हुई रोटी के माध्यम से ईश्वर के टूटे हुए दिल को देखने का मामला है। तो सुसमाचार के भावी प्रचारको, वही करो जो येशु ने किया। पापियों के साथ चलो, पवित्र ग्रन्थ खोलो, रोटी तोड़ो।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
Moreएक आकर्षक पहली मुलाकात, दूरी, फिर पुनर्मिलन...यह अनंत प्रेम की कहानी है। मुझे बचपन की एक प्यारे दिन की याद आती है, जब मैंने यूखरिस्तीय आराधना में येशु का सामना किया था। एक राजसी और भव्य मोनस्ट्रेंस या प्रदर्शिका में यूखरिस्तीय येशु को देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गई थी। सुगन्धित धूप उस यूखरिस्त की ओर उठ रही थी। जैसे ही धूपदान को झुलाया गया, यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की ओर धूप उड़ने लगी, और पूरी मंडली ने एक साथ गाया: " परम पावन संस्कार में, सदा सर्वदा, प्रभु येशु की स्तुति हो, महिमा हो, आराधना हो।" वह बहुप्रतीक्षित मुलाकात मैं खुद धूपदान को छूना चाहती थी और उसे धीरे से आगे की ओर झुलाना चाहती थी ताकि मैं धूप को प्रभु येशु तक पहुंचा सकूं। पुरोहित ने मुझे धूपदान को न छूने का इशारा किया और मैंने अपना ध्यान धूप के धुएं पर लगाया जो मेरे दिल और आंखों के साथ-साथ यूखरिस्त में पूरी तरह से मौजूद प्रभु की ओर बढ़ रहा था। इस मुलाकात ने मेरी आत्मा को बहुत खुशी से भर दिया। सुंदरता, धूप की खुशबू, पूरी मंडली का एक सुर में गाना, और यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की उपासना का दृश्य... मेरी इंद्रियाँ पूरी तरह से संतुष्ट थीं, जिससे मुझे इसे फिर से अनुभव करने की लालसा हो रही थी। उस दिन को याद करके मुझे आज भी बहुत खुशी होती है। हालाँकि, किशोरावस्था में, मैंने इस अनमोल निधि के प्रति अपना आकर्षण खो दिया, और खुद को पवित्रता के ऐसे महान स्रोत से वंचित कर लिया। हालांकि उन दिनों मैं एक बच्ची थी, इसलिए मुझे लगता था कि मुझे यूख्ररिस्तीय आराधना के पूरे समय लगातार प्रार्थना करनी होगी और इसके लिए एक पूरा घंटा मुझे बहुत लंबा लगता था। आज हममें से कितने लोग ऐसे कारणों से - तनाव, ऊब, आलस्य या यहाँ तक कि डर के कारण - यूखरिस्तीय आराधना में जाने से हिचकिचाते हैं? सच तो यह है कि हम खुद को इस महान उपहार से वंचित करते हैं। पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत अपनी युवावस्था में संघर्षों, परीक्षाओं और पीडाओं के बीच, मुझे याद आया कि मुझे पहले कहाँ से इतनी सांत्वना मिली थी, और उस सांत्वना के स्रोत को याद करते हुए मैं शक्ति और पोषण के लिए यूखरिस्तीय आराधना में वापस लौटी। पहले शुक्रवार को, मैं पूरे एक घंटे के लिए पवित्र संस्कार में येशु की उपस्थिति में चुपचाप आराम करती, बस खुद को उनके साथ रहने देती, अपने जीवन के बारे में प्रभु से बात करती, उनकी मदद की याचना करती और बार-बार तथा सौम्य तरीके से उनके प्रति अपने प्यार का इज़हार करती। यूखरिस्तीय येशु के सामने आने और एक घंटे के लिए उनकी दिव्य उपस्थिति में रहने की संभावना मुझे वापस खींचती रही। जैसे-जैसे साल बीतते गए, मुझे एहसास हुआ कि यूखरिस्तीय आराधना ने मेरे जीवन को गहन तरीकों से बदल दिया है क्योंकि मैं ईश्वर की एक प्यारी बेटी के रूप में अपनी सबसे गहरी पहचान के बारे में अधिक से अधिक जागरूक होती जा रही हूँ। हम जानते हैं कि हमारे प्रभु येशु वास्तव में और पूरी तरह से यूखरिस्त में मौजूद हैं - उनका शरीर, रक्त, आत्मा और दिव्यता यूखरिस्त में हैं। यूखरिस्त स्वयं येशु हैं। यूखरिस्तीय येशु के साथ समय बिताने से आप अपनी बीमारियों से चंगे हो सकते हैं, अपने पापों से शुद्ध हो सकते हैं और अपने आपको उनके महान प्रेम से भर सकते हैं। इसलिए, मैं आप सभी को नियमित रूप से यूखरिस्तीय प्रभु के सम्मुख पवित्र घड़ी बिताने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ। आप जितना अधिक समय यूखरिस्तीय आराधना में प्रभु के साथ बिताएँगे, उनके साथ आपका व्यक्तिगत संबंध उतना ही मजबूत होगा। शुरुआती झिझक के सम्मुख न झुकें, बल्कि हमारे यूखरिस्तीय प्रभु, जो स्वयं प्रेम और दया, भलाई और केवल भलाई हैं, उनके साथ समय बिताने से न डरें।
By: पवित्रा काप्पन
Moreजब आपका रास्ता मुश्किलों से भरा हो और आप को आगे का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा हो, तो आप क्या करेंगे? 2015 की गर्मी अविस्मरणीय थी। मैं अपने जीवन के सबसे निचले बिंदु पर थी - अकेली, उदास और एक भयानक स्थिति से बचने के लिए अपनी पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी। मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से थकी और बिखरी हुई थी, और मुझे लगा कि मेरी दुनिया खत्म होने वाली है। लेकिन अजीब बात यह है कि चमत्कार तब होते हैं जब हम उन चमत्कारों की कम से कम उम्मीद करते हैं। असामान्य घटनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से, ऐसा लग रहा था जैसे परमेश्वर मेरे कान में फुसफुसा रहा था कि वह मुझे संरक्षण दे रहा है। उस विशेष रात को, मैं निराश होकर, टूटी और बिखरी हुई बिस्तर पर लेटने गयी थी। सो नहीं पाने के कारण, मैं एक बार फिर अपने जीवन की दुखद स्थिति पर विचार कर रही थी और मैं अपनी रोज़री माला को पकड़ कर प्रार्थना करने का प्रयास कर रही थी। एक अजीब तरह के दर्शन या सपने में, मेरे सीने पर रखी रोज़री माला से एक चमकदार रोशनी निकलने लगी, जिसने कमरे को एक अलौकिक सुनहरी चमक से भर दिया। जैसे-जैसे यह रोशनी धीरे-धीरे फैलने लगी, मैंने उस चमकदार वृत्त के किनारे पर काले, चेहरेहीन, छायादार आकृतियाँ देखीं। वे अकल्पनीय गति से मेरे करीब आ रहे थे, लेकिन सुनहरी रोशनी तेज होती गई और जब भी वे मेरे करीब आने की कोशिश करते, तो वह सुनहरी रोशनी उन्हें दूर भगा देती। मैं स्तब्ध थी, और उस अद्भुत दृश्य की विचित्रता पर प्रतिक्रिया करने में असमर्थ थी। कुछ पलों के बाद, दृश्य अचानक समाप्त हो गया, कमरे में फिर से गहरा अंधेरा छा गया। बहुत परेशान होकर सोने से डरती हुई , मैंने टी.वी. चालू किया। एक पुरोहित, संत बेनेदिक्त की ताबीज़ (मेडल) पकड़े हुए थे और बता रहे थे कि यह ताबीज़ कैसे दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है। जब वे उस ताबीज़ पर अंकित प्रतीकों और शब्दों पर चर्चा कर रहे थे, मैंने अपनी रोज़री माला पर नज़र डाली - यह मेरे दादाजी की ओर से एक उपहार थी - और मैंने देखा कि मेरी रोज़री माला पर टंगे क्रूस में वही ताबीज़ जड़ी हुई थी। इससे एक आभास हुआ। मेरे गालों पर आँसू बहने लगे क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि जब मैं सोच रही थी कि मेरा जीवन बर्बाद हो रहा है तब भी परमेश्वर मेरे साथ था और मुझे संरक्षण दे रहा था। मेरे दिमाग से संदेह का कोहरा छंट गया, और मुझे इस ज्ञान में सांत्वना मिली कि मैं अब अकेली नहीं थी। मैंने पहले कभी संत बेनेदिक्त की ताबीज़ के अर्थ को नहीं समझा था, इसलिए इस नए विश्वास ने मुझे बहुत आराम दिया, जिससे परमेश्वर में मेरा विश्वास और आशा मजबूत हुई। अपार प्रेम और करुणा के साथ, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ मौजूद था, जब भी मैं फिसली तो मुझे बचाने के लिए वह तैयार था। यह एक सुकून देने वाला विचार था जिसने मेरे अस्तित्व को जकड लिया, मुझे आशा और शक्ति से भर दिया। मेरी आत्मा को प्राप्त नया रूप मेरे दृष्टिकोण में इस तरह के बदलाव ने मुझे आत्म-खोज और विकास की यात्रा पर आगे बढ़ाया। मैंने आध्यात्मिकता को अपने रोजमर्रा के जीवन से दूर की चीज़ के रूप में देखना बंद कर दिया। इसके बजाय, मैंने प्रार्थना, चिंतन और दयालुता के कार्यों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध विकसित करने की कोशिश की, यह महसूस करते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति केवल भव्य इशारों तक सीमित नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के सबसे सरल क्षणों में महसूस की जा सकती है। एक रात में पूरा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन मैंने अपने भीतर हो रहे सूक्ष्म बदलावों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। मैं अधिक धैर्यवान हो गयी हूं, तनाव और चिंता को दूर करना सीख गयी हूं, और इस तरह मैंने एक नए विश्वास को अपनाया है कि अगर मैं ईश्वर पर अपना भरोसा रखूंगी तो चीजें उसकी इच्छा के अनुसार सामने आएंगी। इसके अलावा, प्रार्थना के बारे में मेरी धारणा बदल गई है, जो इस समझ से उपजी एक सार्थक बातचीत में बदल गई है कि, भले ही उनकी दयालु उपस्थिति दिखाई न दे, लेकिन ईश्वर हमारी बात सुनता है और हम पर नज़र रखता है। जैसे कुम्हार मिट्टी को उत्कृष्ट कलाकृति में ढालता है, वैसे ही ईश्वर हमारे जीवन के सबसे निकृष्ट हिस्सों को ले सकता है और उन्हें कल्पना की जा सकने वाली सबसे सुंदर आकृतियों में ढाल सकता है। उन पर विश्वास और आशा हमारे जीवन में बेहतर चीजें लाएगी जो हम कभी भी अपने दम पर हासिल नहीं कर सकते हैं, और हमें अपने रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों के बावजूद मजबूत बने रहने में सक्षम बनाती हैं। * संत बेनेदिक्त का मेडल उन लोगों को दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद देते हैं जो उन्हें पहनते हैं। कुछ लोग उन्हें नई इमारतों की नींव में गाड़ देते हैं, जबकि अन्य उन्हें रोज़री माला से जोड़ते हैं या अपने घर की दीवारों पर लटकाते हैं। हालाँकि, सबसे आम प्रथा संत बेनेदिक्त के मेडल को ताबीज़ बनाकर पहनना या इसे क्रूस के साथ जोड़ना है।
By: अन्नू प्लाचेई
Moreमैं विश्वविद्यालय की एक स्वस्थ छात्रा थी, अचानक पक्षाघात वाली बन गयी, लेकिन मैंने व्हीलचेयर तक अपने को सीमित रखने से इनकार कर दिया… विश्वविद्यालय के शुरुआती सालों में मेरी रीढ़ की डिस्क खिसक गई थी। डॉक्टरों ने मुझे भरोसा दिलाया कि युवा और सक्रिय होने के कारण, फिजियोथेरेपी और व्यायाम के द्वारा मैं बेहतर हो जाऊंगी, लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद, मैं हर दिन दर्द में रहती थी। मुझे हर कुछ महीनों में गंभीर दौरे पड़ते थे, जिसके कारण मैं हफ्तों तक बिस्तर पर रहती थी और बार-बार अस्पताल जाना पड़ता था। फिर भी, मैंने उम्मीद बनाई रखी, जब तक कि मेरी दूसरी डिस्क खिसक नहीं गई। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी बदल गई है। ईश्वर से नाराज़! मैं पोलैंड में पैदा हुई थी। मेरी माँ ईशशास्त्र पढ़ाती हैं, इसलिए मेरी परवरिश कैथलिक धर्म में हुई। यहाँ तक कि जब मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए स्कॉटलैंड और फिर इंग्लैंड गयी, तब भी मैंने इस धर्म को बहुत प्यार से थामे रखा, करो या मरो के अंदाज़ में शायद नहीं, लेकिन यह हमेशा मेरे साथ था। किसी नए देश में जाने का शुरुआती दौर आसान नहीं था। मेरा घर एक भट्टी की तरह था, जहाँ मेरे माता-पिता अक्सर आपस में लड़ते रहते थे, इसलिए मैं व्यावहारिक रूप से इस अजनबी देश की ओर भाग गयी थी। अपने मुश्किल बचपन को पीछे छोड़कर, मैं अपनी जवानी का मज़ा लेना चाहती थी। अब, यह दर्द मेरे लिए नौकरी करना और खुद को आर्थिक रूप से संतुलित रखना मुश्किल बना रहा था। मैं ईश्वर से नाराज़ थी। फिर भी, वह मुझे जाने देने को तैयार नहीं था। भयंकर दर्द में कमरे के अन्दर फँसे होने के कारण, मैंने एकमात्र उपलब्ध शगल का सहारा लिया—मेरी माँ की धार्मिक पुस्तकों का संग्रह। धीरे-धीरे, मैंने जिन आत्मिक साधनाओं में भाग लिया और जो किताबें पढ़ीं, उनसे मुझे एहसास हुआ कि मेरे अविश्वास के बावजूद, ईश्वर वास्तव में चाहता था कि उसके साथ मेरा रिश्ता मजबूत हो। लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी कि वह अभी तक मुझे चंगा नहीं कर रहां था। आखिरकार, मुझे विश्वास हो गया कि ईश्वर मुझसे नाराज़ हैं और मुझे ठीक नहीं करना चाहता, इसलिए मैंने सोचा कि शायद मैं उन्हें धोखा दे सकती हूँ। मैंने चंगाई के लिए विख्यात और अच्छे 'आँकड़ों' वाले किसी पवित्र पुरोहित की तलाश शुरू कर दी ताकि जब ईश्वर दूसरे कामों में व्यस्त हों तो मैं ठीक हो सकूँ। कहने की ज़रूरत नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ। मेरी यात्रा में एक मोड़ एक दिन मैं एक प्रार्थना समूह में शामिल थी, मैं बहुत दर्द में थी। दर्द की वजह से एक गंभीर प्रकरण होगा, इस डर से, मैं वहाँ से जाने की योजना बना रही थी, तभी वहाँ के एक सदस्य ने पूछा कि क्या कोई ऐसी बात है जिसके लिए मैं उनसे प्रार्थना की मांग करना चाहूँगी। मुझे काम पर कुछ परेशानी हो रही थी, इसलिए मैंने हाँ कह दिया। जब वे लोग प्रार्थना कर रहे थे, तो उनमें से एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या कोई शारीरिक बीमारी है जिसके लिए मुझे प्रार्थना की ज़रूरत है। चंगाई करनेवाले लोगों की मेरी ‘रेटिंग' सूची के हिसाब से वे बहुत नीचे थे, इसलिए मुझे भरोसा नहीं था कि मुझे कोई राहत मिलेगी, लेकिन मैंने फिर भी 'हाँ' कह दिया। उन्होंने प्रार्थना की और मेरा दर्द दूर हो गया। मैं घर लौट आयी, और वह दर्द अभी भी नहीं थी। मैं कूदने, मुड़ने और इधर-उधर घूमने लगी, और मैं अभी भी ठीक थी। लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मैं ठीक हो गयी हूँ, तो किसी ने मुझ पर विश्वास नहीं किया। इसलिए, मैंने लोगों को बताना बंद कर दिया; इसके बजाय, मैं माँ मरियम को धन्यवाद देने के लिए मेडजुगोरे गयी। वहाँ, मेरी मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जो रेकी कर रहा था और मेरे लिए प्रार्थना करना चाहता था। मैंने मना कर दिया, लेकिन जाने से पहले उसने अलविदा कहने के लिए मुझे गले लगाया, जिससे मैं चिंतित हो गयी क्योंकि उसने कहा कि उसके स्पर्श में शक्ति है। मैंने डर को हावी होने दिया और गलत तरीके से मान लिया कि इस दुष्ट का स्पर्श ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। अगली सुबह मैं भयंकर दर्द में उठी, चलने में असमर्थ थी। चार महीने की राहत के बाद, मेरा दर्द इतना तीव्र हो गया कि मुझे लगा कि मैं वापस ब्रिटेन भी नहीं जा पाऊँगी। जब मैं वापस लौटी, तो मैंने पाया कि मेरी डिस्क नसों को छू रही थी, जिससे महीनों तक और भी ज़्यादा दर्द हो रहा था। छह या सात महीने बाद, डॉक्टरों ने फैसला किया कि उन्हें मेरी रीढ़ की हड्डी पर जोखिम भरी सर्जरी करने की ज़रूरत है, जिसे वे लंबे समय से टाल रहे थे। सर्जरी से मेरे पैर की एक नस क्षतिग्रस्त हो गई, और मेरा बायाँ पैर घुटने से नीचे तक लकवाग्रस्त हो गया। वहाँ और फिर एक नई यात्रा शुरू हुई, एक अलग यात्रा। मुझे पता है कि तू यह कर सकता है जब मैं पहली बार व्हीलचेयर पर घर पहुची, तो मेरे माता-पिता डर गए, लेकिन मैं खुशी से भर गयी। मुझे सभी तकनीकी चीजें पसंद थीं...हर बार जब कोई मेरी व्हीलचेयर पर बटन दबाता था, तो मैं एक बच्चे की तरह उत्साहित हो जाती थी। क्रिसमस की अवधि के दौरान, जब मेरा पक्षाघात ठीक होने लगा, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी नसों को कितना नुकसान हुआ है। मैं कुछ समय के लिए पोलैंड के एक अस्पताल में भर्ती थी। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे जीने वाली थी। मैं बस ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि मुझे एक और उपचार की आवश्यकता है: "तुझे फिर से खोजने की मेरी आवश्यकता है क्योंकि मुझे पता है कि तू यह कर सकता है।" इसलिए, मुझे एक चंगाई सभा के बारे में जानकारी मिली और मुझे विश्वास हो गया कि मैं ठीक हो जाऊंगी। एक ऐसा पल जिसे आप खोना नहीं चाहेंगे वह शनिवार का दिन था और मेरे पिता शुरू में नहीं जाना चाहते थे। मैंने उनसे कहा: "आप अपनी बेटी के ठीक होने पर उस पल को खोना नहीं चाहेंगे।" मूल कार्यक्रम में मिस्सा बलिदान था, उसके बाद आराधना के साथ चंगाई सभा थी। लेकिन जब हम पहुंचे, तो पुरोहित ने कहा कि उन्हें योजना बदलनी होगी क्योंकि चंगाई सभा का नेतृत्व करने वाली टीम वहां नहीं थी। मुझे याद है कि मेरे मन में उस समय यह सोच आई थी कि मुझे किसी टीम की ज़रूरत नहीं है: "मुझे केवल येशु की ज़रूरत है।" जब मिस्सा बलिदान शुरू हुआ, तो मैं एक भी शब्द सुन नहीं पाई। हम उस तरफ बैठे थे जहाँ दिव्य की करुणा की तस्वीर थी। मैंने येशु को ऐसे देखा जैसे मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। यह एक आश्चर्यजनक छवि थी। येशु बहुत सुंदर लग रहे थे! मैंने उसके बाद कभी भी वह तस्वीर नहीं देखी। पूरे मिस्सा बलिदान के दौरान, पवित्र आत्मा मेरी आत्मा को घेरा हुआ था। मैं बस अपने मन में 'धन्यवाद' कह रही थी, भले ही मुझे नहीं पता था कि मैं किसके लिए आभारी हूँ। मैं चंगाई की प्रार्थना का निवेदन नहीं कह पा रही थी, और यह निराशाजनक था क्योंकि मुझे चंगाई की आवश्यकता थी। जब आराधना शुरू हुई तो मैंने अपनी माँ से कहा कि वे मुझे आगे ले जाएँ, जितना संभव हो सके येशु के करीब ले जाएँ। वहाँ, आगे बैठे हुए, मुझे लगा कि कोई मेरी पीठ को छू रहा है और मालिश कर रहा है। मुझे इतनी तीव्रता का अनुभव और साथ साथ आराम भी मिल रहा था कि मुझे लगा कि मैं सो जाऊँगी। इसलिए, मैंने बेंच पर वापस जाने का फैसला किया, लेकिन मैं भूल गयी थी कि मैं 'चल' नहीं सकती। मैं बस वापस चली गई और मेरी माँ मेरी बैसाखियों के साथ मेरे पीछे दौड़ी, ईश्वर की स्तुति करते हुए, माँ कह रही थी: "तुम चल रही हो, तुम चल रही हो।" मैं पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु द्वारा चंगी हो गयी थी। जैसे ही मैं बेंच पर बैठी, मैंने एक आवाज़ सुनी: "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है।" मेरे दिमाग में, मैंने उस महिला की छवि देखी जो येशु के गुजरने पर उनके लबादे को छू रही थी। उसकी कहानी मुझे मेरी कहानी की याद दिलाती है। जब तक मैं इस बिंदु पर नहीं पहुँची जहाँ मैंने येशु पर भरोसा करना शुरू किया, तब तक कुछ भी मदद नहीं कर रहा था। चंगाई तब हुई जब मैंने उसे स्वीकार किया और उससे कहा: "तुम ही मेरी ज़रूरत हो।" मेरे बाएं पैर की सभी मांसपेशियाँ चली गई थीं और वह भी रातों-रात वापस आ गई। यह बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि डॉक्टर लोग पहले भी इसका माप ले रहे थे और उन्होंने एक आश्चर्यजनक, अवर्णनीय परिवर्तन पाया। ऊंची आवाज़ में गवाही इस बार जब मुझे चंगाई मिली, तो मैं इसे सभी के साथ साझा करना चाहती थी। अब मैं शर्मिंदा नहीं थी। मैं चाहती थी कि सभी को पता चले कि ईश्वर कितना अद्भुत है और वह हम सभी से कितना प्यार करता है। मैं कोई खास नहीं हूँ और मैंने इस चंगाई को प्राप्त करने के लिए कुछ खास नहीं किया है। ठीक होने का मतलब यह भी नहीं है कि मेरा जीवन रातों-रात बहुत आरामदायक हो गया। अभी भी कठिनाइयाँ हैं, लेकिन वे बहुत हल्की हैं। मैं उन कठिनाइयों को यूखरिस्तीय आराधना में ले जाती हूँ और येशु मुझे समाधान देता है, या उनसे कैसे निपटना है इस बारे में विचार देता है, साथ ही आश्वासन और भरोसा भी देता है कि वह स्वयं उनसे निपटेगा।
By: एनिया ग्रेग्लेवस्का
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